Monday 27 March 2017

एहसास तुम्हारा

सुनो,
तुम जब हवा सी बहती हो,
मेरे रेत से बिखरे हुए चित्त को
किसी गहरे, ग़ूढ भंवर मे बदल जाती हो |

सुनो,
तुम जब हवा सी बहती हो,
मेरे काठ से कड़े और ढीठ शरीर को
शरारत से झुका, और प्यार से  झुला जाती हो |

सुनो,
तुम जब हवा सी बहती हो,
मेरे अंदर की शांत, निस्तेज लौ को
किसी तीक्ष्ण, धधकती ज्वाला में बदल जाती हो |

सुनो,
तुम जब हवा सी बहती हो,
मेरे असंसक्त, निरुदेश्य व्यक्तित्व को
अभिप्रायपूर्ण, सुसंबद्ध इंसान मे बदल जाती हो |

Tuesday 14 February 2017

एक कविता वात्सल्य के नाम

आखें, 
मानो चकमकाके,
सारी दुनिया को एक ही झपक मे 
निहार लेना चाहती हों |

बाहें, 
मानो छटपटा के,
सारी दुनिया की खुशियाँ 
बटोर लेना चाहती हों |

मुस्कुराहट, 
मानो जागनागाके,
सारी दुनिया का आकर्षण 
पा लेना चाहती हों |

आवाज़, 
मधु छलका के, 
सारी दुनिया को 
डूबा देना चाहती हो |

दो महीने की हो तुम, 
क्या कोई परी हो,
और सबको अपना गुलाम बना लेना चाहती हो?