Tuesday 14 February 2017

एक कविता वात्सल्य के नाम

आखें, 
मानो चकमकाके,
सारी दुनिया को एक ही झपक मे 
निहार लेना चाहती हों |

बाहें, 
मानो छटपटा के,
सारी दुनिया की खुशियाँ 
बटोर लेना चाहती हों |

मुस्कुराहट, 
मानो जागनागाके,
सारी दुनिया का आकर्षण 
पा लेना चाहती हों |

आवाज़, 
मधु छलका के, 
सारी दुनिया को 
डूबा देना चाहती हो |

दो महीने की हो तुम, 
क्या कोई परी हो,
और सबको अपना गुलाम बना लेना चाहती हो?

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