Monday 3 October 2016

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी

ग़ालिब साहब की मशहूर शायरी के सम्मान में नाचीज़ की लिखी कुछ पंक्तियाँ -

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले |

तमन्ना थी तेरे कंधे पे सिर अपना टिका दू मैं,
यही हो रात मेरी, दिन भी मेरा, सुबह - ओ - शब गुज़रे |

बहुत होता सुकून जो नामंज़ूर -ए -इश्क़ या खुदा कह दे,
के दिल के टूट पर भी अक्स से ना तुम निकले ना हम निकले |

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले |




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